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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

तर्कसंग्रह न्याय एवं वैशेषिक दोनों दर्शनों को समाहित करने वाला ग्रन्थ है। इसके रचयिता अन्नंभट्ट हैं जिनका समय १६२५ से १७०० ई. माना जाता है।

तर्कसंग्रह के अध्ययन से न्याय एवं वैशेषिक के सभी मूल सिद्धान्तों का ज्ञान मिल जाता है। इस ग्रन्थ में 'पदार्थों' के विषय में जो कुछ है वह पूर्णतः वैशेषिक के अनुसार है जबकि 'प्रमाण' के विषय में जो कुछ है वह पूर्णतः न्याय के अनुसार है। अर्थात् पदार्थों के लिये 'वैशेषिक मत' को स्वीकार किया गया है तथा प्रमाण के लिये 'न्याय मत' को। इस प्रकार इस ग्रन्थ के माध्यम से न्याय और वैशेषिक मत को एक में मिलाया गया है। अनुमान, दर्शन और तर्कशास्त्र का परिभाषिक शब्द है। भारतीय दर्शन में ज्ञान प्राप्ति के साधनों का नाम प्रमाण है। अनुमान भी एक प्रमाण है। चार्वाक दर्शन को छोड़कर प्रायः सभी दर्शन अनुमान के ज्ञान प्राप्ति का एक साधन मानते हैं। अनुमान के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है उसका नाम अनुमिति है।

प्रत्यक्ष द्वारा जिस वस्तु के अस्तित्व का ज्ञान नहीं हो रहा है, उसका ज्ञान किसी ऐसी वस्तु के प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर, जो उस अप्रत्यक्ष वस्तु के अस्तित्व का संकेत दे, इस ज्ञान पर पहुँचने की प्रक्रिया का नाम अनुमान है। अनुमान प्रमाण में पाँच खण्ड हैं जो 'अवयव' कहलाते हैं। प्रतिरा, हेतु, उदाहरण, उपनय (जो वाक्य बतलाये हुये चिह्न या लिंग का होना प्रकट करे ) और निगमन। इसको उदाहरण से समझिये, यहाँ पर आग है (प्रतिज्ञा )। क्योंकि यहाँ धुआँ है ( हेतु)। जहाँ-जहाँ धुआँ रहता है, वहाँ-वहाँ आग रहती है, जैसे रसाई घर में (उदाहरण)। यहाँ पर धुआँ है (उपनय) इसीलिए यहाँ पर आग है ( निगमन)। साधारणतः इन पाँच अवयवों से युक्त वाक्य को न्याय कहते हैं। अतएव इन पाँच अवयवों से युक्त प्रमाण को अनुमान प्रमाण कहते हैं।

'अनु' उपसर्गपूर्वक 'माङ् माने' धातु से करण अर्थ में 'ल्युट् प्रत्यय' होकर अनुमान शब्द की उत्पत्ति हुई है। अनुमान शब्द 'अनु' तथा 'मान' दो शब्दांशों के योग से बना है, जिसमें 'अनु' का अर्थ है 'पश्चात्' और 'मान' का अर्थ होता है 'ज्ञान'। इस 'अनुमान' प्रमाण को प्रवृत्ति प्रत्यक्ष अथवा आगम के पश्चात् हुआ करता है, अतः इसको अनुमान कहा जाता है जिसके द्वारा अनुमिति की जाती है, उसे अनुमान कहा जाता है - "अनुमायते अनेन इति अनुमानम् अथवा येन ही अनुमीयते तद् अनुमानम्” अथवा "अनुमित्तिः अनुमानम्ः। अनुमति से उत्पन्न प्रभा अथवा ज्ञान जिस साधन अथवा करण के द्वारा प्राप्त होता है उसका नाम अनुमान है।

अनुमान प्रमाण का लक्षण - आचार्य अन्नम्भट्ट ने 'तर्कसंग्रह' में अनुमान प्रमाण का लक्षण बताते हुए कहा है-

"अनुमितिकरणमनुमानम्। परामर्शजन्यं ज्ञानम् अनुमितिः। व्याप्तिविशिष्टपत्रधर्मताज्ञानं परामर्शः। यथा - 'वह्निव्याप्यधूमवानयं पर्वतः' इति ज्ञानं परामर्शः। तजन्यं पर्वतो वह्निमान्' इति ज्ञानमनुमितिः। 'यत्र यत्रधूमस्तत्र तत्राग्निः' इति साहचर्यनियमो व्याप्तिः। व्याप्तस्य पर्वतादिवृत्तित्वं पत्रधर्माता।'

अर्थात् अनुमिति का कारण अनुमान है। परामर्श से उत्पन्न होने वाला ज्ञान अनुमिति है। व्याप्ति से विशिष्ट पत्रधर्मता विषयक ज्ञान को परामर्श कहते हैं। जैसे- 'अग्नि से युक्त (व्याप्य) यह पर्वत धूम वाला है - इस प्रकार का ज्ञान परामर्श है। इससे उत्पन्न होने वाला 'पर्वत विद्यमान है यह ज्ञान ही अनुमिति है। 'जहाँ-जहाँ धूम है, वहाँ-वहाँ अग्नि है, इस प्रकार का साहचर्य नियम ही व्याप्ति है। व्याप्त अग्नि का पर्वतादि पक्ष में रहना है। पक्षधर्मता है।

अनुमान प्रमाण के भेद - तर्कसंग्रहकार आचार्य अन्नम्भट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण के दो भेद होते हैं - 'अनुमानं द्विविधम् स्वार्थं परार्थं च। अर्थात् अनुमान दो प्रकार का है- 'स्वार्थ' और 'परार्थ'। अतः इन दोनों अनुमान प्रमाणों का संक्षिप्त विवरण निम्न है-

स्वार्थ अनुमान: - स्वार्थ अनुमान ( स्व + अर्थ + अनुमान) शब्द व्युत्पत्ति इस प्रकार है- "स्वस्य अर्थः प्रयोजनं यस्मात् तत् स्वार्थं तत् खलु अनुमानम्, स्वार्थानुमानम्' अर्थात् जो अनुमान अपने लिये हो वह स्वार्थानुमान है। स्वार्थानुमान में व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर तुरन्त अनुभव कर लेता है, क्योंकि स्वार्थ अनुमान से व्यक्ति स्वयं अनुमान लगाता है।-

आचार्य अन्नम्भट्ट स्वार्थानुमान के विषय में कहते हैं-

"तत्र स्वार्थं स्वानुमितिहेतुः। तथाहि स्वयमेव भूयो दर्शनेन यत्र धूमस्तत्राग्निः' इति महानसादौ व्यप्तिं गृहीत्वा पर्वतसमीपं गतस्तद्गते चाग्नौ सन्दिहानः पर्वते धूमं पश्यन् व्याप्तिं स्मरति 'यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र अग्निः' इति। तदनन्तरं 'वधिव्याप्यधूमवायनं पर्वतः' इति ज्ञानम् उत्पद्यते। अयमेव लिङ्गपरामर्शः इत्युच्यते। तस्मात् 'पर्वतोनद्यिमान्' इति ज्ञानमनुमितिरूप्रद्यते। तदेतत्वस्वार्थानुमानम्।

अर्थात् इसमें स्वार्थ वह है, जिसमें स्वयं की अनुमिति हो। जैसे कोई व्यक्ति स्वयं ही रसोईघर आदि में जाकर धुआँ के साथ अग्नि को देखता है और उसे शीघ्र ही अग्नि और धुआँ के बीच व्याप्ति अर्थात् सहचर्य (साथ-साथ रहना) सम्बन्ध का ज्ञान होता है। फिर जैसे ही वह एक दिन अचानक पर्वत में धुआँ को देखता है और व्याप्ति का स्मरण हो जाने के कारण अग्नि का ज्ञान हो जाता है। इसे ही स्वार्थानुमान प्रमाण कहा जाता है।

परार्थानुमानः - परार्थानुमान ( पर + अर्थ + अनुमान) शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है "परस्य एव अर्थः प्रयोजनं यस्मात् तत् परार्थम्, तत् खलु अनुमानम्, परार्थानुमानम्' अर्थात् जो अनुमान दूसरों के लिए हो वह परार्थ है। परार्थानुमान में अपने अनुभव के आधार पर एक निश्चित वाक्यों वाली भाषा का प्रयोग करके वह ज्ञान दूसरों को प्रेषित किया जाता है, इसलिये यह परार्थानुमान कहलाता है।

आचार्य अन्नम्भट्ट परानुमान के विषय में तर्कसंग्रह में कहते हैं-

"युत्त स्वयं धूमादग्निमनुमाय पर प्रतिपत्यर्थं पञ्चावयववाक्यं प्रयुङ्क्तेतत् परार्थानुमानम् यथा - पर्वतो विद्यमान् धूमत्तात्। यो यो धूमवान् स स विद्यमान् यथा महानसः, तथा चायम्, तस्मान्तया इति। अनेन प्रतिपादिताल्लिंङ्गात् परोऽप्यग्निं प्रतिपद्यते।"

अर्थात् जो स्वयं धूम से अग्नि का अनुमान करके दूसरे व्यक्ति को समझाने के लिए पाँच अवयवों वाले वाक्य का प्रयोग किया जाता है वह परार्थानुमानं कहलाता है। अर्थात् जब कोई व्यक्ति स्वयं किसी पदार्थ का अनुमान प्राप्त कर लेता है तो उसी अनुभव के आधार पर जब दूसरे व्यक्ति को ज्ञान कराता है, तो उसे परार्थानुमान प्रमाण कहा जाता है। जैसे पर्वत विद्यमान है, क्योंकि यह धूमवान है। जो-जो धूमं वाला होता है, वह वह अग्नि वाला भी होता है, यथा रसोईघर, तथा ही यह भी है, अतः इसमें भी वैसे ही अग्नि है। इस प्रकार कहे गये लिंग से दूसरा व्यक्ति भी अग्नि का ज्ञान कर लेता है।

इस परार्थानुमान का बोध कराने के लिये 'पाँच अवयवों का प्रयोग किया जाता है, जिसके विषय में आचार्य अन्नम्भट्ट कहते हैं-

"प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनानि पञ्चावयवाः 'पर्वतो विद्यमान्' इति प्रतिज्ञा। धूमवत्वादिति हेतुः। यो यो धूमवान् स सोऽग्निमान् यथा महानसम् इत्युदाहरणम्। तथा चायम् इत्युपनयः। तस्मात्थेति निगमनम्।"

अर्थात् 'प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन' ये पाँच अवयव हैं। 'पर्वत विद्यमान' यह 'प्रतिज्ञा' है, क्योंकि 'यह धूमवान् है, यह हेतु है, 'जो-जो धूमवान है, वह वह विद्यमान है, जैसे 'रसोईघर' यह 'उदाहरण' है, 'यह भी वैसा ही है, यह 'उपनय' है, इसलिए 'यह विद्यमान है' यह निगमन है। अतः इन पाँच अवयवों का सोदाहरण व्याख्या निम्नलिखित है-

१. प्रतिज्ञा - पर्वत को धूम से युक्त देखकर जब कोई व्यक्ति कहता है कि यह पर्वत अग्नि वाला है- 'पर्वतोऽय विद्यमान्' यही वाक्य 'प्रतिज्ञा वाक्य' कहलाता है।

२. हेतुः - प्रतिज्ञा वाक्य की सिद्धि हेतु दी गई युक्ति अथवा कारण का कथन करना ही 'हेतु' है। जिसे श्रोता द्वारा जिज्ञासा व्यक्त करने पर वक्ता प्रयोग करता है - श्रोता तथा वक्ता कौन है, समझिये।

श्रोता - यहाँ से पर्वत तो बहुत दूर है, तथा अग्नि हमें दिखाई भी नहीं दे रही है, तो फिर आपने कैसे जान लिया कि "यह पर्वत अग्नि वाला है।

इस प्रकार श्रोता द्वारा जिज्ञासा करने पर वक्ता कहता है कि-

वक्ता - पर्वत के धूम वाला होने के कारण जाना गया कि पर्वत अग्नि से युक्त है - "धूमवत्तात्"।

३. उदाहरण: - यहाँ श्रोता को धूम और अग्नि के नियमित साहचर्य रूप व्याप्ति को रसोईघर का उदाहरण देकर समझाया जाता है - "यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र वह्निः यथा - महानसः" अर्थात् जहाँ-जहाँ धूम होता है, वहाँ-वहाँ अग्नि होती है।

४. उपनयः - श्रोता द्वारा रसोईघर में धूम अग्नि के सहचर्य रूप नियम को समझने के पश्चात् वक्ता पुनः पर्वत की ओर संकेत करते हुए कहता है कि ठीक उसी प्रकार का "यह पर्वत भी धूम से युक्त है" " तथा चायम्" इसी प्रकार यह उपनय व्याप्ति स्मरणपूर्वक द्वितीय परामर्श भी कहलाता है।

५. निगमन: - इस प्रकार प्रस्तुति के बाद वक्ता अपने कथन की पुष्टि में प्रथम प्रतिज्ञा वाक्य का प्रयोग दृढ़ता के साथ इस प्रकार करता है- "इसलिये तो यह पर्वत अग्नि न दिखाई देते हुये भी "अग्नि वाला है" "तस्मात्या" पञ्चावयव वाक्य के अन्तिम स्तर पर वस्तुतः वक्ता का प्रतिज्ञा वाक्य सिद्ध हो जाता है

१. प्रतिज्ञा - वाक्यः पर्वतः विद्यमान्
२. हेतुः - धूमवत्ताद्
३. उदाहरण: - यो यो धूमवान् सो सो अग्निमान् यथा महानसम्
४. उपनयः - तथा चायम्
५. निगमन:- तस्मात् तथेति।

उपरोक्त विवेच्य से अनुमान प्रमाण स्पष्ट हो जाता है परन्तु संक्षिप्त रूप में इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं किसी एक वाक्य अथवा एक से अधिक वाक्यों की सत्यता को मानकर उसके आधार पर क्या-क्या सत्य हो सकते हैं, इसको निश्चित करने की प्रक्रिया का नाम अनुमान है और विशेष परिस्थितियों अनुभव के आधार पर सामान्य व्याप्तियों का निर्माण भी अनुमान ही है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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